सफल रहा ‘छत्तीसगढ़ बंद’ : किसान आंदोलन ने जनता का माना आभार, कहा — मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा
September 27, 2021किसान विरोधी तीन काले कानूनों और मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत भारत बंद को ऐतिहासिक बताते हुए और छत्तीसगढ़ में इसे सफल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े सभी घटक संगठनों और छत्तीसगढ़ किसान सभा तथा आदिवासी एकता महासभा ने आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कि ये कानून वापस नहीं लिए जाते और देश को बेचने वाली नीतियों को त्यागा नहीं जाता। उन्होंने कहा है कि इस देशव्यापी बंद में 40 करोड़ लोगों की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी ने यह साबित कर दिया है कि भारतीय लोकतंत्र को मटियामेट करने की संघी गिरोह की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि प्रदेश में बंद का व्यापक प्रभाव रहा तथा बस्तर से लेकर सरगुजा तक मजदूर, किसान और आम जनता के दूसरे तबके सड़कों पर उतरे। कहीं धरने दिए गए, कहीं प्रदर्शन हुए और सरकार के पुतले जलाए गए, तो कहीं चक्का जाम हुआ और राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे गए। मीडिया के लिए आज हुए आंदोलन की तस्वीरें और वीडियो जारी करते हुए किसान सभा नेता संजय पराते ने बताया कि अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर, गरियाबंद, धमतरी, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़, सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया और मरवाही सहित 20 से ज्यादा जिलों में प्रत्यक्ष कार्यवाही हुई और बांकीमोंगरा-बिलासपुर मार्ग, अंबिकापुर-रायगढ़ मार्ग, सूरजपुर-बनारस मार्ग और बलरामपुर-रांची मार्ग में सैकड़ों आदिवासियों ने सड़कों पर धरना देकर चक्का जाम कर दिया। इस चक्का जाम में सीटू सहित अन्य मजदूर संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया और मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की।
किसान नेताओं ने बताया कि कई स्थानों पर हुई सभाओं को वहां के स्थानीय नेताओं ने संबोधित किया और किसान विरोधी कानूनों की वापसी के साथ ही सभी किसानों व कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गांरटी का कानून बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि देशव्यापी कृषि संकट से उबरने और किसान आत्महत्याओं को रोकने का एकमात्र रास्ता यही है कि उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले, जिससे उनकी खरीदने की ताकत भी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था भी मंदी से उबरेगी। इस आंदोलन के दौरान किसान नेताओं ने मनरेगा, वनाधिकार कानून, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों के राज्य प्रायोजित दमन और 5वी अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दों को भी उठाया।