हां, मैं एक नारी हूं (लेखिका शिखा गोस्वामी “निहारिका” मारो, मुंगेली छ्त्तीसगढ़)
November 7, 2022रायपुर 07 नवंबर 2022/ सनातन दशनाम गोस्वामी समाज कि बेटी लेखिका शिखा गोस्वामी “निहारिका” निवासी मारो मुंगेली निवासी ने अपने काव्य के माध्यम से जनता तक अपनी व्यक्त रखी है।
लेखिका शिखा गोस्वामी” निहारिका”
निशब्द, अव्यक्त
अनसुनी कहानी हूं।
समझ कर भी समझ ना आऊं,
हां मैं एक नारी हूं।
पौराणिक कथाओं में,
साहसी, स्वाभिमानी हूं।
अपने अस्तित्व के लिए लड़ती,
हां मैं वहीं नारी हूं।
किसी के पैरों की चप्पल नहीं,
माथे की चमकती बिंदिया हूं।
सपनों को मैं सच कर लाऊं,
आंखो की वह निंदिया हूं।
बिन मेरे घर आंगन सूना,
उपवन की हरियाली हूं।
मेरा हों सम्मान जहां पर,
वहां की नित्य दिवाली हूं।
पुत्री रूप में लक्ष्मी बनकर,
पिता के घर जब आती हूं।
अपनी महक से घर महकाकर,
आंगन सूना कर जाती हूं।
बहिन रूप में शक्ति बनकर,
भाई की कलाई सजाती हूं।
नाज़ुक डोर से रक्षा करके,
भाई पर स्नेह लुटाती हूं।
पत्नि रूप में प्रियतमा बनकर,
पति का घर सजाती हूं।
हर दुःख सुख में साथ निभाकर,
पत्नि धर्म निभाती हूं।
मां रूप में वात्सल्य की देवी,
ममतामयी बन जाती हूं।
संतान पर संकट कोई,
आगे खड़ी नजर आती हूं।
मैं ही उमा,रमा, ब्रम्हाणी,
राधा, सीता, भवानी हूं।
अस्तित्व पर मेरे आंच आए तो,
बन जाती महाकाली हूं।
उपभोग की मैं वस्तु नहीं,
सम्मान मिले यह चाहती हूं।
मिलता है सम्मान जहां,
प्रेम से सर झुकाती हूं।
मिले सम्मान हमें भी,
ज्यादा ना कुछ चाहती हूं।
सिर उठाकर हम जी सकें,
सभी को यही सिखाती हूं।
गर्व है स्त्रीत्व रूप पर,
स्त्रीत्व पर इठलाती हूं।
ठेस ना पहुंचाएं मेरे आत्मसम्मान को,
उम्मीद यही जताती हूं।
लाख आए तूफान कोई,
सब पर मैं भारी हूं।
चट्टान सी मजबूत,ह्
हां मैं एक नारी हूं।
कैसी भी हो परिस्थिति ,
कभी ना हिम्मत हारी हूं।
समझ कर भी समझ ना आऊं,
हां मैं एक नारी हूँ।।