वर्ल्‍ड ऑटिज्‍म डे : ज़रूरत है ऑटिज्‍म के पीड़ितों को दिल से स्वीकार करने की

वर्ल्‍ड ऑटिज्‍म डे : ज़रूरत है ऑटिज्‍म के पीड़ितों को दिल से स्वीकार करने की

April 2, 2021 0 By Central News Service

आज वर्ल्ड ऑटिज़्म डे है। यानी उन लोगों का दिन जिन्हें हम और आप कुछ अलग मानते हैं, लेकिन जो असल में हम-आप जैसे ही हैं- बेशक, अपनी तरह से। ऐसे लोगों को आप क़रीब से समझें |

World Autism Awareness Day 2021: दुनियाभर में 2 अप्रैल ‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ के रूप में मनाया जाता है. ऑटिज्म डे मनाने का उद्देश्य इस गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करना है.

ऑटिज्‍म एक ऐसा न्‍यूरोलॉजिकल डिस्‍ऑर्डर है जिसमें पीड़‍ित बचपन से ही दूसरे बच्‍चों की तरह अपने परिवार के सदस्‍यों या आसपास के माहौल के साथ जुड़ नहीं पाते हैं.

ऑटिज्‍म में दिमाग के अलग-अलग हिस्‍से एक साथ काम नहीं कर पाते हैं. इसे ऑटिज्‍म स्‍पेक्‍ट्रम भी कहा जाता है. ऑटिज्‍म के श‍िकार बच्‍चों को ऑटिस्टिक कहा जाता है. अगर कोई बच्‍चा ऑटिस्टिक है तो जिंदगी भर उसे ऑटिज्‍म रहेगा. इस डिस्‍ऑर्डर को ठीक तो नहीं किया जा सकता, लेकिन थोड़ी सावधानी और थोड़े से प्‍यार-दुलार की बदौलत इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है.

क्यों होता है ऑटिज्म?

दुनियाभर में ज्यादातर लोग ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित हैं. इस बीमारी का अभी वास्तविक कारण पता नहीं लग पाया है. लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ऑटिज्म की बीमारी जींस के कारण भी हो सकती है. इसके अलावा वायरस,
-जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी ऑटिज्म को जन्म दे सकती है.

  • इस बीमारी पर हुई एक स्टडी में बताया गया है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से पीड़ित महिलाओं के पैदा होने वाले बच्चों में ऑटिज्म विकसित होने की अधिक आशंका रहती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान महिला में किसी बीमारी या पोषक तत्वों की कमी भी उनके बच्चे को ऑटिज्म बीमारी का शिकार बना सकती है.
    -गर्भवती महिला में रूबेला होने पर भी बच्चे में ऑटिज्म की शिकायत हो सकती है।
    -प्रेग्‍नेंसी के समय अगर मां का थाइरॉइड कम हो तो बच्‍चा ऑटिस्टिक हो सकता है.

किन लोगों को होता है ऑटिज्‍म?

  • लड़कियों की तुलना में ऑटिज्‍म का खतरा लड़कों को ज्‍यादा होता है.
  • 26 हफ्ते से पहले पैदा होने वाले बच्‍चों को भी ऑटिज्‍म होने का खतरा रहता है.
  • अगर एक बच्‍चे को ऑटिज्‍म है तो दूसरा बच्‍चा भी ऑटिस्टिक हो सकता है.

क्या होते हैं लक्षण-

ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1 से 3 साल के बच्चों में नजर आ जाते हैं

कुछ सामान्‍य लक्षण हैं:

  • ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सामान्य बच्चों की तरह किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देने से कतराते हैं. ऐसे बच्चे आवाज सुनने के बावजूद भी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.
  • ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी कई रुकावटों का सामना करना पड़ता है.
  • ऑटिज्म बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही खोए रहते हैं.
  • अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाएं, क्योंकि ये ऑटिज्म का ही लक्षण है.
  • ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कभी भी किसी से नजरे मिलाकर बात नहीं करते हैं.
  • मानसिक विकास न होने की वजह से ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों में समझ विकसित नहीं हो पाती है, जिस कारण उन्हें शब्दों को समझने में दिक्कत होती है.
  • आमतौर पर बच्चे मां या अपने आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे ऐसा नहीं कर पाते हैं.
  • ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.
  • ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को बोलने में भी दिक्‍कत आती है.
  • ऐसे बच्‍चे अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं कर पाते हैं.
  • लगातार हिलते रहना.
  • बहुत ध्‍यान से एक ही चीज को लगातार करते रहना.

ऑटिज्‍म का इलाज-

वैसे तो ऑटिज्‍म का कोई इलाज नहीं है, लेकिन स्‍पीच थेरेपी और मोटर स्किल special education जैसे कई तरीके हैं जिन्‍हें अपनाकर इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. साथ ही सावधानी और प्‍यार-दुलार की बदौलत ऑटिस्टिक बच्‍चा भी दूसरे बच्‍चों की तरह जिंदगी जी सकता है. ऑटिस्टिक बच्‍चे की जिंदगी काफी चुनौतीपूर्ण होती है. ऐसे में उन्हें प्यार और दुलार की काफी जरूरत होती है. ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चे की ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और वे उनकी अनदेखी करने लगते हैं. ऐसे में जरूरी है कि बिना आपा खोए धैर्य के साथ बच्‍चे पर ध्‍यान दें और उसे प्रोत्‍सोहित करें.

ऑटिस्टिक चाइल्ड की परवरिश में पैरंट्स रखें इन बातों का ध्यान-

बच्चों को पालना आसान काम नहीं होता है, यह अपने आप में ही पैरंट्स के लिए बड़ा चैलेंज है। बच्चा अगर ऑटिज्म से पीड़ित है तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस स्थिति में माता-पिता को बच्चे के ब्रेन व इमोशनल विकास के लिए ज्यादा प्रयास करने पड़ते हैं।

तारीफ करना-

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे दूसरों से बात करने या उनके साथ मिलने-जुलने में खुद को असहज पाते हैं। यहां तक कि पैरंट्स से भी वह अपनी भावनाएं छिपाते और उनसे दूरी बनाते दिखते हैं। ऐसे में पैरंट्स को अपनी ओर से ज्यादा प्रयास करने होंगे। ऑटिस्टिक बच्चा अगर कुछ करता है तो उसकी तारीफ जरूर करें।

उम्मीद न छोड़ें-

ऑटिस्टिक बच्चे की परवरिश आसान नहीं यह बात सभी समझते हैं, लेकिन उम्मीद न छोड़ें। आपके उम्मीद छोड़ने का सबसे बड़ा और बुरा असर बच्चे पर होगा। ऑटिज्म को यदि कम उम्र में सही ट्रीटमेंट व ध्यान न मिले तो बड़े होने पर बच्चे के लिए मुश्किलें और बढ़ जाती हैं क्योंकि बाहरी दुनिया में उन्हें हर जगह स्पेशल सपॉर्ट नहीं मिलेगा।

ट्रीटमेंट पर दें ध्यान-

एक बार यह पता चल जाने पर कि बच्चा ऑटिस्टिक है तो मेडिकल or special education मदद जरूर लें।

बाहर ले जाएं-

ऑटिस्टिक बच्चे सोशल सर्कल में जाने से परेशान हो जाते हैं, लेकिन उन्हें आउटिंग पर जरूर ले जाएं। यह उन्हें लोगों से जुड़ा डर दूर करने और अंजान लोगों से कैसे बात करें इसमें मदद करेगा। सबसे बढ़िया होगा कि आप बच्चे को पार्क में खिलाने ले जाए, क्योंकि हमउम्र के साथ ऐसे बच्चों को घुलने-मिलने में आसानी होती है।

बात करें-
ऑटिस्टिक बच्चों से बातें करें और उन्हें किसी चर्चा का हिस्सा बनाएं। इससे उनमें अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां करने की आदत डलेगी। हालांकि यह ध्यान रहे कि आप बच्चे पर बोलने के लिए जोर न डालें। हर स्थिति में उनका सहज बने रहना बहुत जरूरी है। आपकी डांट या इरिटेट होना उन पर उल्टा असर डालेगा और बच्चा बोलने की जगह और चुप रहने लगेगा।

स्कूल में बात करें-

बच्चा ऑटिस्टिक है तो बेहतर होगा कि स्कूल और उसकी टीचर्स को पहले ही इस बारे में बता दिया जाए ताकि उस पर वहां भी विशेष ध्यान दिया जा सके।

ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के पैरंट्स से मिलें-

आपके लिए भले ही ऑटिज्म पीड़ित बच्चे को पालना पहला एक्सपीरियंस हो, लेकिन दुनिया में कई माता-पिता इस स्थिति का सामना करते हुए अपने ऑटिस्टिक चाइल्ड की बहुत अच्छे से परवरिश कर रहे हैं। इन पैरंट्स के ग्रुप भी होते हैं चाहे तो आप इनसे जुड़ सकते हैं। यकीन मानिए एक्सपीरियंस्ड पैरंट्स से मिलने पर आपको जो चीजें समझने का मौका मिलेगा वह किसी और तरीके से शायद ही मिल पाए।

एक्सपीरियंस्ड पैरंट्स से संपर्क करने के लिए डॉ। मीता मुखर्जी और श्री राज किशोर से संपर्क करें.
Piyali Foundation Raipur