रायपुर पियाली फाउंडेशन ने अंतरराष्ट्रीय डाउन सिंड्रोम दिवस एक कदम सफलता की ओर मनाकर लोगों को जागरूक किया
March 20, 2021छत्तीसगढ़ 20 मार्च 2021- हर साल 21 मार्च को अंर्तराष्ट्रीय डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है। इन बच्चों के बारे में आम लोगों को जागरूकता नहीं है। फाउंडेशन के मुख्यता डॉ. मीता मुखर्जी ने बताई कि डाउन सिंड्रोम जिसे ट्राईसोमी 21 के नाम से भी जाना जाता है। एक अनुवांशिक विकार है, जो कोमोसोम 21 की तीसरी प्रतिलिपि के सभी या किसी भी हिस्से की उपस्थिति के कारण होता है यह आमतौर पर शारीरिक विकास में देरी, विशेषता चेहरे में छोटी और खींची ऑँखें, नाक चपटी, कान छोटे, जीभ निकली हुई, हाथों की उंगलियों में बनावट छोटी व रेखाएं कम होती है ऐसी एक बच्ची की मां हूँ , जिसका नाम पियाली मुखर्जी है। उसकी उम्र 36 साल है। आज मुझे अपनी बच्ची पर गर्व है उसने अपनी विकलांगता से लड कर आज इस मुकाम में पहुची है। शायद कोई सामान्य लड़की भी नहीं पहुँच सकती।
पियाली के जन्म के बाद जब 15 दिनों में डॉक्टर ने उसे जाँच करके बताया कि वह शायद डाउन सिंड्रोम हो सकती है। जो शब्द शायद मेरे और परिवार के लिए अपरिचित हो, न कभी सुना न कभी कोई बच्चा देखा । मेरी तो दुनिय ही बिखर गई। हर माँ-बाप का सपना एक सुन्दर और स्वस्थ बच्चे की कामना होती है, पर यह जानने के बाद उनक बच्चा विकलांग है, सारे सपने चूर हो जाते है। कोई दिशा नहीं मिलती क्योंकि ऐसी परिस्थिति के लिए कोई भी माता – पिता’ तैयार नहीं होते मेरी बेटी ने मेरी तो जिन्दगी ही बदल के रख दी पहले डॉक्टरों के पास घूमे, फिर जाना कि इसक कोई इलाज नहीं, सिर्फ प्रशिक्षण ही इसका निदान है। मुम्बई के स्कूल से “होम बेस्ड प्रोग्राम” लाकर पियाली की एक साल की उम्र से ही प्रशिक्षण की शुरूआत हुई। फिर स्पेशल स्कूल में प्रशिक्षण नागपुर, कोलकाता, मुम्बई, रायपुर सब जगह ले जाकर उससे प्रशिक्षित किए। पढ़ने लिखने के साथ-साथ योगा की ट्रेनिंग ली। इसी दौरान हमें उसके नृत्य के कौशल का पता चला पर कोई डांस क्लास प्रशिक्षण देने को तैयार नहीं, क्योंकि वे उसे समझ ही नहीं पा रहे थे मैनें ही उसे पहले नृत्य सिखाया। उसने बहुत सारे कार्यक्रम में भाग लिया, इनाम भी जीता उसका उत्साह बढ़ता गया. और धीरे-धी नृत्य उसका जूनुन बन गया। मेरे साथ गृह कार्य भी करने लगी। अपने वातावरण को समझने लगी।
मैं भी पियाली के साथ-साथ अपने आप को शरीक किया। मानसिक विकलांगता पर डिग्री लिया, डॉक्टरेट किया ताकि अपनी बच्ची के साथ-साथ दूसरे बच्चों की सेवा कर सकु और अन्य बच्चों को इस मानसिकता से निकाल सकें। सन् 2004 में “पियाली फाउण्डेशन ” का गठन किया अन्य अभिभावकों के साथ “जागरूक पैरेन्ट्स एसोसिएशन” नामक सोसाइटी बनाया अब पियाली फाउण्डेशन मे 70 से अधिक बच्चे सेवा पा रहे है, जो कि रायपुर व आसपास गांव व शहरों के है। अब पियाली यहाँ योगा टीचर व सहायक शिक्षिका का कार्य कर रही है। अब हर बड़े कार्यक्रम में नृत्य प्रदर्शन करती हैं। उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया जात है।
“पियाली फाउण्डेशन” अब सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं पूरे भारत में अपना स्थान बना चुका है। पियाल फाउण्डेशन में सभी तरह की पुनर्वास सेवाओं के साथ टीचर ट्रेनिंग कोर्स का भी संचालन किया जाता है, जहा आसपास के प्रदेशों के लोगों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है । आज इस “डाउन सिंड्रोम” के दिवस पर मैं सबसे अपील करती हूँ कि इस बच्चों को स्वीकार कर समाज
उचित स्थान, समान अधिकार और समान अवसर दे। ये लोग बहुत प्यारे और खुशमिजाज होते है लोगों के बीच रहना पसंद करते है। इन्हें सिर्फ प्यार चाहिए, न इन्हें आपके पैसे या रूतबे से मतलब, ये सिर्फ प्यार के भूखे है।
इन्हें सहानुभूति या दया नहीं, प्यार चाहिए। उपरोक्त लेख को सांझा करते हुए पियाली फाउंडेशन के डॉरेक्टर मीता मुखर्जी ने बताई।