बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

August 4, 2022 0 By Central News Service

मोदी जी के विरोधियों का बचपना नहीं जाने वाला। बताइए, झारखंड के कांग्रेस के तीन विधायक, बंगाल में हावड़ा में पकड़े गए, करीब पैंतालीस लाख की नकदी के साथ। और कांग्रेस पार्टी है कि नाच-नाच के सारी दुनिया को बता रही है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को गिराने की मोदी जी की पार्टी की साजिश नाकाम हो गयी। कह रहे हैं कि महाराष्ट्र की उद्धव सरकार गिराने के बाद से ही, झारखंड की हेमंत सोरेन की सरकार, विपक्षी सरकारों को गिराने की मोशा पार्टी की मुहिम के निशाने पर थी। झारखंड के विधायकों के लिए महाराष्ट्र से काफी कम, सिर्फ दस-दस करोड़ का रेट लगया जा रहा था। सौदे के लिए पैसा लाने के लिए, तीन विधायक हावड़ा में थे, जो किसी मुखबिर की खबर पर पकड़े गए। पैसा जब्त और विधायक हवालात में। यानी हेमंत सोरेन की सरकार तो बच गयी! न पेशगी का पैसा बचा और न पैसा बांटने वाला; अब सरकार कोई सेंत-मेंत में तो गिर नहीं जाएगी! यानी हेमंत की किस्मत उद्घव से अच्छी तगड़ी निकली। लेकिन, क्या सचमुच हेमंत सोरेन की सरकार बच गयी है? माना कि आज बच गयी है, लेकिन कल? कल नहीं तो परसों। विपक्षी सरकार कब तक टिक पाएगी? आखिर, बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी!

फिल्म दीवार वाले डायलाग ने बहुत दिनों लोगों को भरमा लिया। अमिताभ बच्चन के सवाल के जवाब में कि–मेरे पास सूट है, बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, इज्जत है, शोहरत है, तुम्हारे पास क्या है; शशि कपूर यह कहकर तालियां लूट लेता है कि–मेरे पास मां है! विपक्षी क्या सोचते हैं कि इस सवाल-जवाब में मां की जगह, विधानसभा में बहुमत अपने पास होने की दलील रख देने से, उनकी सरकारें बची रह जाएंगी? यह विपक्षियों की खुशफहमी है। सरकारें सिर्फ बहुमत से बची नहीं रह सकती हैं। तब तो हर्गिज नहीं जब उनकी तरफ विधानसभा में बहुमत के जवाब में मोशा पार्टी के पास चुनाव बांड का बेशुमार पैसा है, गोदी मीडिया है, सीबीआइ है, ईडी है, एनआइए है, गवर्नर है और जरूरत पडऩे पर बड़ी वाली अदालत भी है। जब सब कुछ दूसरी तरफ है और तो दूसरी तरफ वाले ने विपक्षी सरकार-मुक्त देश बनाने का पक्का मन भी बना लिया है, तो सिर्फ बहुमत के भरोसे सरकारें नहीं टिका करतीं। न तो पेंतीस लाख पकड़े जाने से हेमंत सोरेन की सरकार गिराने वालों का बजट खत्म हो जाएगा और न कांग्रेस के तीन विधायकों के सस्पेंड किए जाने से, सरकार गिराने में काम आने वालेे विधायकों का टोटा पड़ जाएगा। यानी हावड़ा में जो हुआ, वह तो बस एक दुर्घटना थी। बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं। इसके बाद भी खरीददार रहेंगे, बिकने वाले भी और मास्टरस्ट्रोक कहकर उस पर मोहर लगाने वाले भी। तब कैसे विपक्ष का बहुमत रहेगा और कैसे उसकी सरकारें रहेंगी। बकरे की मां आखिर, कब तक खैर मनाएगी!

और हां, विरोधियों ने ये जो सरकार गिराना-गिराना लगा रखी है, मोदी जी को इस पर तो रोक ही लगा देनी चाहिए। विपक्ष वाले बहुमत जुगाड़ कर सरकार बना लें, तो सरकार बनाना और मोशा पार्टी बहुमत कबाड़ कर सरकार बना ले, तो सरकार गिराना, यह क्या दुहरा पैमाना नहीं है? डैमोक्रेसी में एक सरकार जाती है, तब दूसरी आती है। सरकार के गिरने की बातें कर के नेगेटिविटी फैलाने की इजाजत किसी को भी क्यों दी जाए, जबकि दूसरी सरकार बनने की बात कर के पॉजिटिविटी लायी जा सकती है। सरकार गिरने-गिराने का लफ्ज़ जो भी जुबां पर लाएगा, देश को बदनाम करने के लिए जेल जाएगा।