समाज के लिए मिसाल बनीं मिर्जापुर की ये सहेलियां, PM मोदी भी कर चुके हैं तारीफ
December 7, 2020कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों.! मशहूर शायर दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है मिर्जापुर में रहने वाली दो सहेलियों ने। शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने कोरोना काल में ऐसे कई उदाहरण पेश किए हैं जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है। कॉलेज बंद होने के बाद वे खुद तो पढ़ाई कर ही रही हैं, साथ ही जरूरतमंदों की मदद भी कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मन की बात कार्यक्रम में इनकी सराहना कर चुके हैं।
विन्ध्य पहाड़ियों की गोद में बसा मिर्जापुर मां विंध्यवासिनी के नाम से भी जाना जाता है। यहां की महुहरिया कॉलोनी निवासी पूर्णिमा सिंह और शिखा मिश्रा बीएचयू में पढ़ाई कर रही हैं। कोरोना काल में कॉलेज बंद होने के बाद दोनों लड़कियों ने अपनी पढ़ाई जारी रखने के बाद गरीब और जरूरतमंदों के लिए भी कई काम किए हैं।
अभियान चलाकर जरूरतमंदों को बांटे गर्म कपड़े
दिसंबर के महीने में जरूरतमंदों को ठंड से बचाने के लिए इन्होंने 2 दिन का अभियान चलाया था। इसके लिये दोनों सहेलियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से गरीबों को कपड़े देने की अपील की थी। अपील का असर हुआ और ढेर सारे नए पुराने कपड़े इकठ्ठे हो गए जिन्हें जरूरतमंद लोगों के बीच बांट दिया गया। इन दो दिनों में उन्होंने करीब 6 दर्जन परिवारों को गरम कपड़े उपलब्ध कराए हैं।
बच्चों को दे रहीं फ्री शिक्षा, हर दिन लगती है क्लास
पूर्णिमा सिंह और शिखा मिश्रा नगर के बरियाघाट पर अपने समय का सद्पयोग करते हुए छोटे बच्चों को फ्री में हर रोज दो घंटे पढ़ाने का काम भी करती हैं। यहां दर्जनों बच्चे रोज पढ़ने के लिये आते थे, जिनको ये लोग कॉपी पेंसिल भी देती थीं।
दीदी की झोली में पुस्तकालय
इसके साथ ही ये दोनों सहेलियां ने एक पुस्तकालय भी चलाती हैं जिसकी प्रधानमंत्री मोदी भी सराहना कर चुके हैं। दोनों लड़कियां बच्चों को पढ़ाने के साथ ही बच्चों की मांग के अनुसार नियमित किताबें झोले में भरकर लाती हैं और उन्हें पढ़ने के लिए देती हैं।
लोगों के लिए बनी मिसाल
शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि कोरोना काल में कॉलेज बंद होने के बाद हम लोग खाली थे तो सोचा कि क्यों ना कुछ अलग किया जाए। इसी हौसले के साथ हम लोगों ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गई। उसके बाद हम बच्चों के मांग के मुताबिक पढ़ने के लिये झोले में भरकर किताबे भी लाने लगे। पूर्णिमा और शिखा का कहना है कि सरकार सारे काम नहीं कर सकती। हमारी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने शहर को और अच्छा बनाने के लिए कुछ अलग कार्य करें। इन दोनों लड़कियों का हौसला आज दूसरों के लिए मिसाल बन गया है।