जीएसटी भारत में औपनिवेशिक कर प्रणाली बन गई है – कैट

जीएसटी भारत में औपनिवेशिक कर प्रणाली बन गई है – कैट

May 16, 2022 0 By Central News Service

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी कर प्रणाली की वर्तमान व्यवस्था पर बड़ा तंज कसते हुए कहा की यह अब एक औपनिवेशिक कर प्रणाली बन गई है जो जीएसटी के मूल घोषित उद्देश्य “गुड एंड सिंपल टैक्स के ठीक विपरीत है। वर्तमान जीएसटी कर प्रणाली भारत में हो रहे व्यापार की जमीनी हकीकत से काफी हद तक दूर है। जीएसटी के तहत 1100 से अधिक संशोधनों और नियमों की शुरूआत ने कर प्रणाली को बेहद जटिल बना दिया है और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की मूल धारणा के बिलकुल खिलाफ है। यह कहते हुए कैट ने आज सूरत में सधर्न गुजरात चेम्बर ऑफ़ कामर्स द्वारा आयोजित एक व्यापारी सम्मेलन तथा सूरत टैक्स बार एसोसियेशन्स द्वारा वकीलों की एक मीटिंग को संबोधित करते हुए माँग की कि जीएसटी कर ढाँचे की नए सिरे से समीक्षा कर उसे सरल बनाया जाए ।

कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने पिछले 4 वर्षों से अधिकारियों द्वारा जीएसटी के वर्तमान स्वरुप की कड़ी आलोचना करते हुए कहा की भारत में जीएसटी लागू होने के लगभग 4 साल बाद भी जीएसटी पोर्टल अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। नियमों में संशोधन किया गया है लेकिन पोर्टल उक्त संशोधनों के साथ समय पर अद्यतन करने में विफल है। अभी तक किसी भी राष्ट्रीय अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं किया गया है। “वन नेशन-वन टैक्स“ के मूल सिद्धांतों को विकृत करने के लिए राज्यों को अपने तरीके से कानून की व्याख्या करने के लिए राज्यों को खुला हाथ दिया गया है। कोई केंद्रीय अग्रिम शासक प्राधिकरण का गठन नहीं किया गया है। जीएसटी अधिकारी ई सिस्टम के द्वारा कर पालना तो कराना चाहते हैं किन्तु देश में व्यापारियों के बड़े हिस्से को अपने मौजूदा व्यवसाय में कम्प्यूटरीकरण को अपनाना बाकी है, इस पर उन्होंने कभी नहीं सोचा और व्यापारियों आदि को कंप्यूटर आदि से लैस करने के विषय में कोई एक कदम भी नहीं उठाया गया है।

श्री पारवानी और श्री दोशी ने कहा कि हाल ही में एक जीएसटी में एक नियम लागू करके जीएसटी अधिकारियों को किसी भी व्यापारी के जीएसटी पंजीकरण को रद्द करने का मनमाना अधिकार दे दिया है जिसमें व्यापारियों को कोई नोटिस नहीं दिया जाएगा और सुनवाई का कोई अवसर भी नहीं दिया जाएगा । यह न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के बिलकुल विरूद्ध है । अधिकारियों को मनमाने बेलगाम अधिकार दिए जा रहे हैं जिससे निश्चित रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। जीएसटी कानून को बेहद विकृत किया गया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि 31 दिसंबर, 2020 तक जीएसटी लागू होने की तारीख के बाद से कुल 927 अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, 2017 में 298, 2018 में 256, 2019 में 239 और 2020 में 137 सूचनाएं। ऐसी स्थिति में हम व्यापारियों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे कराधान प्रणाली का समय पर अनुपालन करें।

श्री पारवानी और श्री दोशी ने कहा कि वे वित्त मंत्री के साथ बातचीत के जरिए इन मुद्दों को हल करना चाहते हैं। हम कर आधार को विस्तृत करने, राजस्व में वृद्धि करने में सरकार का साथ देने चाहते हैं किन्तु कर ढांचे के सरलीकरण और युक्तिकरण को करना पहले जरूरी है।