दूधाधारी मठ रायपुर में भगवान शंकराचार्य का प्राकट्य उत्सव, छत्तीसगढ़ सनातन दशनाम गोस्वामी समाज ने  हर्षोल्लास के साथ मनाया

दूधाधारी मठ रायपुर में भगवान शंकराचार्य का प्राकट्य उत्सव, छत्तीसगढ़ सनातन दशनाम गोस्वामी समाज ने हर्षोल्लास के साथ मनाया

May 7, 2022 0 By Central News Service

दूधाधारी मठ रायपुर में भगवान शंकराचार्य का प्राकट्य उत्सव छत्तीसगढ़ सनातन दशनाम गोस्वामी समाज ने बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में महंत सुरेन्द्र पुरी (सोरर), अध्यक्षता उमेश भारती गोस्वामी, अध्यक्ष छग सनातन दशनाम गोस्वामी समाज, और अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में गोस्वामी समाज के संरक्षकद्वय लिल्लार पुरी व चित्रसेन गिरी मौजूद थे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पं. तरुण गोस्वामी ने अपने उदबोधन में भगवान शंकराचार्य के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि जिस कालखंड में अधर्म का बोलबाला हो गया था जब विधर्मी मिलकर सनातन धर्म को तहस नहस करके नष्ट करने का प्रयास कर रहे थे ऐसे समय में भगवान शंकर ने अवतार के रूप में जन्म लेकर सनातन संस्कृति को पुनर्स्थापित किया। भगवान शंकराचार्य ने पूरे भारतवर्ष की यात्रा की गांव-गांव जाकर असंख्य उपदेश दिए, अनेक विधर्मीयों को दीक्षा देकर पुनः हिन्दू धर्म में वापस मिलाया। उन्होंने देश के चार कोनो में बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ, जगन्नाथपुरी में गोवर्धनमठ, द्वारिका में शारदामठ और दक्षिण में श्रृंगेरी मठ की स्थापना की ये सभी मठ आज भी सनातन धर्म के गौरव है। आद्य शंकराचार्य ने अद्वैत सिद्धांत को ठोस पहचान दिलाकर फिर से स्थापित किया उन्होंने अपने उपदेश में स्पष्ट किया कि परमात्मा एक ही समय में सगुन और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहते है, अद्वैत वेदांत में उन्होंने बताया कि जीव और ईश्वर अलग-अलग नहीं है जीव केवल अज्ञान के कारण ही ईश्वर को नहीं जान पाता जबकि ईश्वर उसके भीतर ही विराजमान हैं। मुख्य अतिथि की आसंदी से अपनी बात कहते हुए श्री महंत सुरेन्द्र पुरी ने कहा समाज के प्रत्येक व्यक्ति का अपना महत्व है जैसे प्रत्येक शब्द में मंत्र बनने की ताकत है जैसे प्रत्येक वनस्पति में औषधि बनने की शक्ति है वैसे ही यहां कोई व्यक्ति चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि का हो उसके भीतर समाज के लिए योगदान देने का सामर्थ्य है। श्री महंत ने कहा कि हम सब साथ-साथ रहे, साथ भोजन करें तो हमारे बीच का मतभेद और मनभेद दूर होगा ऐसा होने से ही एकता स्थापित की जा सकेगी, सभी मिलकर पराक्रम करे तो वांछित परिणाम मिलने में कोई देरी नहीं होगी। सभी समाज के प्रति कुछ न कुछ योगदान अवश्य दे और जो परिश्रम कर रहे है उनका मनोबल बढ़ाए तो समाज के गौरव की पुनर्स्थापना की जा सकेगी। अध्यक्षता कर रहे छग सनातन दशनाम गोस्वामी समाज के प्रांताध्यक्ष उमेश भारती गोस्वामी ने अपने उदबोधन में कहा कि भगवान शंकराचार्य सनातन धर्म के सूर्य है उन्होंने पूरे देश में अनेक मंदिरों और शक्तिपीठों का जीर्णोद्धार कराया है, उन्होंने जो दर्शन और मूल्य समाज के लिए छोड़ा है वह अनंतकाल तक मानवता का पथप्रदर्शन करता रहेगा। आद्य शंकराचार्य के ज्ञान का पूरा सार शिक्षा, एकता और अनुशासन में समाहित है। आज भी उनके मंतव्य को कसौटी पर देखें तो हमें यह दृष्टिगत होता है कि इस समय भी समाज को सबसे अधिक आवश्यकता शिक्षा-प्रोत्साहन, एकता और अनुशासन की है। एक पढ़ा लिखा आदमी ही सम्मान पाता हैं, जो समाज एकजुट और अनुशासित होता है उसकी तरक्की में भी कोई देरी नहीं होती। उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने मिलकर चुनौतीयों का सामना करने का आह्वान किया, प्रांताध्यक्ष ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि हजारों लोगों के बीच मतभेद कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन आपस में व्यक्तिगत विरोधी दृष्टिकोण, असमानताएं, विभाजन और कभी कभी संघर्ष पैदा करती है। दूसरों से असहमत होना आसान है लेकिन सम्मानपूर्वक असहमत होने के लिए वास्तविक शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है। हमें विविधता और भिन्न विचारों का सम्मान करना होगा, क्योंकि कोई भी समाज विविधता के साथ ही फलता-फूलता है। हम यह कभी न भूलें कि हम सबका लक्ष्य एक है वह है समाज की प्रगति। कार्यक्रम के संयोजक और जिला गोस्वामी समाज रायपुर के अध्यक्ष वेदपुरी गोस्वामी ने अपने उद्बोधन में महादेवघाट में प्रस्तावित सामाजिक भवन के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नए सामाजिक भवन में सर्वसुविधायुक्त चार कक्ष जिसकी लागत छः लाख, दो मंजिला टॉयलेट-बाथरूम, ऊपरी तल में चारों ओर बॉउंड्री, लाइट-पंखा-कूलर, फर्नीचर, पम्प-बोर व नलजल व्यवस्था के लिए अनुमानित लागत पांच लाख रुपये और सामने भूखण्ड में घेरा- बॉउंड्री व रंगमंच निर्माण के लिए सात लाख रुपए खर्च होंगे। उक्त भवन प्रांतीय स्तर पर पूर्ण रूप से सुसज्जित होगा जो सभी जिलों की जरूरतों को पूरा करेगा, एक कक्ष को दो-तीन व्यक्ति या परिवार मिलकर भी बना सकते है, यदि कोई चाहे तो अपने पूर्वजों के नाम पर कक्ष निर्माण करा सकते है, यदि कोई जिला शाखा चाहे तो अपने जिले की ओर से भी कक्ष निर्माण करा सकते है। दानदाताओं और उनके पूर्वजों का नाम शिलालेख में स्थायी रूप से अंकित किया जाएगा, दानदाता चाहे तो सामग्री भी दान दे सकते है। उन्होंने बताया कि दानदाता हमसे संपर्क कर अपना सहयोग राशि जमा करा सकते हैं। प्रांतीय संरक्षक और कार्यक्रम के विशेष अतिथि लिल्लार पुरी ने कहा कि समाज में ऐसे आयोजनों का बहुत महत्व है क्योंकि इससे लोगों को अपने गौरवशाली इतिहास को जानने का अवसर मिलता है साथ ही समाज में अपनी ओर से कुछ योगदान करने की प्रेरणा भी होती हैं। संगठित समाज ही सही दिशा में आगे बढ़कर अपने पवित्र उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है इसलिए समाज में जागरूकता का निरंतर प्रयास होना चाहिए। संरक्षक और विशेष अतिथि चित्रसेन गिरी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति एक इकाई के रूप में अपनी भूमिका को समझे और योगदान करें तो सभी लक्ष्यों को आसानी से पाया जा सकता है उन्होंने महादेवघाट में प्रस्तावित नए सामाजिक भवन के लिए अधिक से अधिक सहयोग की अपील की। कार्यक्रम में युवक-युवती परिचय सम्मेलन का भी आयोजन हुआ जिसका संचालन नरेंद्र पुरी ने किया जबकि उदबोधन खंड में मंच संचालन का दायित्व श्रीमती अनुपमा गोस्वामी और पेमेंद्र गिरी ने किया, सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन तोषण गिरी और सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी खंड का संचालन श्रीमती सुधा गोस्वामी ने किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए आभार प्रदर्शन प्रांतीय संगठन सचिव पोखराज बन ने किया। इस अवसर पर मार्गदर्शक रमन गिरी, मानस मर्मज्ञ अर्जुन पुरी, भागवताचार्य पं. सुजीत पुरी, सुधीर बन, महासमुंद पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक गिरी, धमतरी जिलाध्यक्ष दामोदर पुरी, कुबेर प्रकाश गिरी, राजेन्द्र गिरी, केशव गिरी, अरविन्द गोस्वामी, सचिन पुरी, बद्री गिरी, रमेश गिरी, राजू गोस्वामी, रमेश पुरी, पप्पू जनार्दन पुरी, ममता गोस्वामी, नीलू गोस्वामी आदि उपस्थित थे।