विपक्ष को और बांट सकते हैं नतीजे (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

विपक्ष को और बांट सकते हैं नतीजे (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

March 14, 2022 0 By Central News Service

अप्रत्याशित भले नहीं हों, लेकिन कुछ हैरान करने वाले जरूर हैं ये नतीजे। विधानसभा चुनाव के मौजूदा चक्र में प्रभावशाली कामयाबी और उसमें भी खास तौर पर उत्तर प्रदेश में जोरदार कामयाबी के मौके पर भाजपा मुख्यालय में हुई समारोही सभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2024 के आम चुनाव के लिए अपना चुनाव प्रचार शुरू भी कर दिया। मोदी ने 2019 के आम चुनाव में अपनी प्रभावशाली जीत की याद दिलाते हुए कहा कि “विद्वानों’ ने तब कहा था कि यह जीत तो तभी तय हो गई थी‚ जब 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की जीत हुई थी। उम्मीद है कि 2022 की उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की जीत के बाद ‘विद्वान’ इसे भी 2024 की जीत की शुरुआत कहेंगे!”

वैसे‚ उत्तर प्रदेश के 2022 के चुनाव का सीधा कनेक्शन 2024 के आम चुनाव से जोड़ने की शुरुआत खुद प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं की है। विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में प्रभावशाली जीत के मौके पर प्रधानमंत्री ने जिस चुनावी कनेक्शन की बाकायदा पुष्टि की है‚ उसकी शुरुआत उनकी सरकार के नंबर–टू माने जाने वाले अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में इस बार का चुनाव प्रचार शुरू करते हुए ही कर दी थी। यह दूसरी बात है कि इस कनेक्शन पर जोर देेने के पीछे तब भाजपा नेताओं का मकसद मोदी के प्रभाव तथा राजनैतिक प्रतिष्ठा की दुहाई का उत्तर प्रदेश में कठिन लगते चुनावी मुकाबले के लिए दोहन करना ही था। बहरहाल‚ अब इस कनेक्शन का अर्थ बदल गया है और प्रधानमंत्री 2024 के चुनाव की अपनी संभावनाओं को मजबूत प्रदर्शित करने और इसके जरिए संभावित रूप से अपने को मजबूत करने के लिए भी इस कनैक्शन की याद दिला रहे हैं।

फिर भी‚ अगर प्रधानमंत्री विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में भाजपा की कामयाबी में दो साल बाद होने वाले अगले आम चुनाव में अपनी संभावनाओं की बढ़ोतरी देख रहे हैं‚ तो इसे निराधार भी नहीं कहा जाएगा। आखिरकार‚ विधानसभाई चुनाव के इस चक्र में सत्ताधारी पार्टी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ही सत्ता अपने हाथ में बनाए रहने में कामयाब नहीं रही है‚ बल्कि इस चक्र में तीन अन्य राज्यों में भी सत्ता अपने हाथ में बनाए रखने में कामयाब रही है। इस चक्र में चुनाव से गुजरे पांच राज्यों में से चार राज्योें में ही चुनाव से पहले भाजपा की सरकारें थीं। पंजाब अकेला राज्य है‚ जहां चुनाव से पहले भी कांग्रेस की सरकार थी और चुनाव में आप की सरकार के पक्ष में जनादेश आया है। पंजाब में भाजपा की सीटों में आई मामूली गिरावट और उत्तराखंड में उसकी सीटों में उल्लेखनीय कमी को छोड़ दिया जाए तो विधानसभाई चुनाव के इस चक्र में मोदी के नेतृत्व में भाजपा कुल मिलाकर कम से कम न नफा न नुकसान की स्थिति में तो जरूर ही रही है।

राजनीतिक संभावनाएं और नतीजे :
भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं के लिए इस नतीजे का अर्थ इसलिए और भी बढ़ जाता है कि 2019 के आम चुनाव में मोदी की पहले से भी ज्यादा वोट तथा सीटों के साथ जीत के बाद से विधानसभाई चुनावों के सभी चक्रों में भाजपा को हार का नहीं, तो उल्लेखनीय नुकसान का मुंह जरूर देखना पड़ा था। 2019 के आम चुनाव के चंद महीने बाद आए विधानसभाई चुनाव के महत्वपूर्ण चक्र में भाजपा झारखंड तथा महाराष्ट्र में सरकारें गंवा बैठी थी‚ जबकि हरियाणा में बहुमत से काफी पीछे रह जाने के चलते उसे जजपा के साथ गठजोड़ सरकार बनानी पड़ी थी। फिर दिल्ली में विधानसभाई चुनाव में एक बार फिर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और कुछ ही आगे चलकर बिहार में विधानसभा चुनाव में जद यू–भाजपा गठजोड़ हारते–हारते बचा।

विधानसभा चुनाव में अगले महत्वपूर्ण चुनाव को भाजपा की नाकामी की तरह ही देखा गया, जिसमें सारे संसाधन और ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा प. बंगाल में सत्ता के आसपास भी नहीं पहुंच पाई। इसी चक्र में भाजपा की सहयोगी अन्ना द्रमुक पार्टी‚ जोरदार तरीके से भाजपा विरोधी गठबंधन के हाथों सत्ता गंवा बैठी जबकि केरल में सीपीएम के नेतृत्व में एलडीएफ ने राज्य के आम चलन के उलट लगातार दूसरी बार जोरदार जनादेश हासिल किया, जबकि भाजपा इस राज्य में गत चुनाव में ही खुला अपना खाता भी बंद करा बैठी। असम में जरूर भाजपा‚ सत्ता पर कब्जा बनाए रखने में कामयाब रही, लेकिन बहुत–बहुत मामूली अंतर से ही।

इस तरह‚ 2019 के आम चुनाव के बाद आए विधानसभाई चुनावों के सभी चक्रों में आम तौर पर यही छवि बन रही थी कि भाजपा का जनसमर्थन गिरावट पर था और 2019 की चुनावी कामयाबी संयोग ही ज्यादा थी‚ जो उसकी ताकत को वास्तविकता से बढ़ाकर दिखाती थी। इस छवि को ऐतिहासिक किसान आंदोलन समेत मेहनतकश जनता तथा विशेष तौर पर रोजगार की मांग को लेकर युवाओं के बढ़ते आंदोलनों ने और कोविड की महामारी के दौरान मोदी सरकार की घनघोर विफलताओं से पैदा हुई लोगों की नाराजगी ने और भी रेखांकित कर दिया था। इस सब की पृष्ठभूमि में विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र में भाजपा का कुल मिलाकर न नफा न नुकसान में रहना भी‚ इस गिरावट के अगर पलटे जाने का नहीं‚ तो थमने का तो संकेत करता ही है। अचरज नहीं कि मोदी की भाजपा इसे ही अपनी बड़ी भारी कामयाबी बनाकर दिखाने की कोशिश कर रही है और इसे भाजपा के शासन के खिलाफ कोई एंटी–इन्कम्बेंसी न होने के सबूत से खींचकर उसके लिए सकारात्मक समर्थन बनाकर चलाने की कोशिश कर रही है।

विकल्प की संभावनाएं कठिन :
कहने की जरूरत नहीं है कि मोदी की भाजपा के ग्राफ में उसके दूसरे कार्यकाल के आधे गुजर जाने के बाद गिरावट का थमता नजर आना भी अगले आम चुनाव में उसके विकल्प की संभावनाओं को कठिन बनाता है। फिर इस गिरावट के थमते नजर आने का मोदी राज के पक्ष में हवा बनाने केे लिए वह कैसे इस्तेमाल करेगी‚ इसका अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन अगले आम चुनाव में मोदी के विकल्प को उभारनेे के प्रयासों की मुश्किलें विधानसभाई चुनाव के ताजा चक्र के नतीजों से सिर्फ इसीलिए नहीं बढ़ी हैं कि आम चुनाव के बाद से भाजपा के समर्थन में नजर आ रही गिरावट इन नतीजों से थमती नजर आती है।

2024 के चुनाव में मोदी की जीत की संभावनाओं में मददगार नजर आने वाला एक और कारक इस चक्र के चुनाव नतीजों से पुख्ता होता नजर आता है। और इसका संबंध विपक्षी एकता की संभावनाओं पर इस चक्र के नतीजोें के संभावित असर से है। सभी जानते हैं कि खास तौर पर प. बंगाल के चुनाव के बाद से विपक्षी एकता की संभावनाओं को कुछ न कुछ धक्का ही लगा था। बंगाल में मोदी को हराने के बाद ममता बनर्जी की प्रधानमंत्रित्व की आकांक्षाएं इसके पीछे प्रमुख कारक बनी रही थीं। इसी के हिस्से के तौर पर बनर्जी ने त्रिपुरा‚ गोवा तथा अन्यत्र में भी यहां–वहां अन्य विपक्षी पार्टियों तथा खास तौर पर कांग्रेस में तोड़–फोड़कर पांव फैलाने की कोशिश की थी। तृणमूल कांग्रेस की और आप की भी ऐसी ही कोशिशों का असर कम से कम गोवा में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने वाला साबित हुआ लगता है।

बहरहाल‚ अब पंजाब में आप की जबर्दस्त जीत के बाद‚ और वह भी कांग्रेस को हराकर‚ विपक्ष के बिखराव की इस प्रक्रिया के तेज होने के ही आसार नजर आते हैं। अचरज नहीं होगा कि इससे न सिर्फ कांग्रेस को किनारे करके गैर–कांग्रेसी विपक्षी एकता की पुकारें तेज हों‚ बल्कि कांग्रेस का स्थानापन्न बनने की कोशिश में आप जैसी पार्टियां गुजरात जैसे राज्यों में विपक्ष का वोट और विभाजित कर भाजपा की सत्ता को ही सुरक्षित करने में मददगार हों। याद रहे कि 2022 के बाद भी विपक्ष का विभाजन ही है, जो मोदी को 2024 में जीत का भरोसा दिलाता है, वर्ना उत्तर प्रदेश में मोदी–योगी की शानदार जीत के पीछे भी न सिर्फ भाजपा के करीब पचास सीटें गंवाने की‚ बल्कि 2019 के आम चुनाव की तुलना में करीब आठ फीसद वोट गंवाने की कहानी तो छुपी ही हुई है‚ सपा और बसपा का सम्मिलित वोट भाजपा से खासा ज्यादा रहने की कहानी भी छुपी हुई है। इस चुनाव के नतीजों से विपक्ष का बिखराव अगर बढ़ता है‚ तो वही 2024 में मोदी की जीत सुनिश्चित करेगा।