सरकार ने एलआईसी के आईपीओ ,यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को बिक्री औररक्षा कर्मचारियों की हड़ताल पर प्रतिबंध अलोकतांत्रिक कदम के खिलाफ देश भर में हुआ प्रदर्शन
July 23, 2021आज देश भर में श्रमिक, कर्मचारियों ने सरकार द्वारा एलआईसी के आईपीओ , यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की बिक्री
और रक्षा कर्मचारियों की हड़ताल पर प्रतिबंध के अलोकतांत्रिक कदम के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किया । रायपुर में पंडरी स्थित एल आई सी के मंडल कार्यालय पर द्वार प्रदर्शन के बाद हुई सभा को संबोधित करते हुए एआईआईआईए के सहसचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि
भारत सरकार ने अपने ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और उनके कर्मचारियों पर तीखा हमला किया है। नवउदारवाद की प्रतिगामी आर्थिक विचारधारा के प्रति वचनबद्ध यह सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को नष्ट करने और उन्हें निजी पूंजी को सौंपने की जल्दी में है।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने एलआईसी के आईपीओ को मंजूरी दे दी है। सरकार द्वारा बेचे जाने वाले शेयर का प्रतिशत तय करने के लिए वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह को अधिकृत किया गया है। आरंभिक सार्वजनिक पेशकश के सलाहकार नियुक्त कर दिये किए गए हैं। बीमांकन फर्म मिलिमन एडवाइजर्स को एलआईसी के अंतर्निहित मूल्य का निर्धारण करने के लिए नियुक्त किया गया है और उम्मीद है कि यह कार्य अगस्त तक पूरा हो जाएगा। सरकार इस पब्लिक इश्यू के प्रबंधन के लिए बैंकरों को शामिल करने की प्रक्रिया में है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, सरकार इस साल के अंत तक एलआईसी को स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करने के लिए सभी प्रयास करेगी।
भारत सरकार, एलआईसी आईपीओ के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध और सार्वजनिक लामबंदी के चलते, विधायी मानदंडों का उल्लंघन करते हुए वित्त विधेयक(बजट) के माध्यम से एलआईसी अधिनियम में आवश्यक संशोधन लाई। सरकार इस बात से आशंकित थी कि यदि इन संशोधनों को वित्त विधेयक से अलग, स्वतंत्र रूप से लाया जाता है, तो संसद में उसके भारी बहुमत के बावजूद यह कार्य कठिन हो जाएगा। इन संशोधनों की अधिसूचना का प्रभावी रूप से अर्थ एलआईसी के निगमीकरण है और यह संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य के एक साधन के रूप में एलआईसी के अस्तित्व पर गंभीर सवाल उठाती है। यह एलआईसी अधिनियम में संशोधनों से स्पष्ट है, जो यह वचन देता है कि सरकार एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी को नियत समय में 51% तक कम कर सकती है। अगर हम देखें कि बैंकिंग और आम बीमा उद्योग में क्या हो रहा है जहां भी कानून के माध्यम से ऐसी प्रतिबद्धता की गई है, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सरकार यहाँ इस प्रतिबद्धता के प्रति भी वफादार रहेगी।
बीमा कानून संशोधन अधिनियम 2015 के तहत आम बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करते हुए, सरकार ने वादा किया था कि वह सार्वजनिक क्षेत्र की आम बीमा कंपनियों में हर समय 51% हिस्सेदारी बनाए रखेगी। सरकार ने अब आम बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 में कुछ और संशोधनों के माध्यम से अपनी इस कानूनी प्रतिबद्धता को हटाने का निर्णय लिया है। इन संशोधनों को संसद के मानसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को एकमुश्त बेचने का फैसला किया है। मामला यूनाइटेड इंडिया के निजीकरण से नहीं थमेगा। सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की नीति के अनुरूप अन्य तीन सार्वजनिक आम बीमा कंपनियों का भी यथासमय निजीकरण करने का प्रयास किया जाएगा।
सरकार ने आईडीबीआई बैंक को बेचने का फैसला किया है और एलआईसी पर इस बैंक में अपनी हिस्सेदारी को कम करने का दबाव है, ताकि प्रबंधकीय नियंत्रण नए खरीदार को हस्तांतरित किया जा सके। नीति आयोग ने निजीकरण के उम्मीदवार के रूप में इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की सिफारिश की है। फिर मामला यहीं नहीं थमता है। वित्त सचिव टी.वी सोमनाथन ने कहा है कि अंततः सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंक बेचे जाएंगे। हम इसका पुरजोर विरोध करते है ।
कामरेड महापात्र ने एक अध्यादेश के माध्यम से रक्षा कर्मचारियों की हड़ताल कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाने में सरकार की अलोकतांत्रिक और तानाशाही कार्रवाई पर एआईआईईए ने चिंता व्यक्त की है। यह अध्यादेश रक्षा उपकरणों के उत्पादन, सेवाओं और सेना से जुड़े किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठानों के संचालन या रखरखाव में शामिल श्रमिकों साथ-साथ रक्षा उत्पादों की मरम्मत और रखरखाव में कार्यरत लोगों के हड़ताल और विरोध का जायज़ अधिकार छीन लेता है। आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) को भंग करने और इसे 7 निगमों में बदलने के सरकार के फैसले का विरोध करने के लिए रक्षा कर्मियों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया था। यह स्पष्ट रूप से रक्षा उत्पादन के निजीकरण की दिशा में एक कदम है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाला है। एआईआईईए इस कार्रवाई की निंदा करता है और रक्षा कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन करता है । केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 23 जुलाई को विरोध सभा और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर सरकार की निजीकरण नीति के खिलाफ और मजदूरों के अधिकारों पर इस क्रूर हमले का विरोध करने के लिए पूरे मजदूर वर्ग का आह्वान किया है। ट्रेड यूनियनों ने कोविड महामारी और बड़े पैमाने पर नौकरी के नुकसान के चलते श्रमिकों की बदतर स्थिति को कम करने के लिए भी कदम उठाने की भी मांग की है।
उन्होंने कहा कि इसलिए, *एआईआईईए के आव्हान पर अपनी 23 जुलाई, 2021 को सभी कार्यालयों के सामने भोजनावकाश के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र और उसके कर्मचारियों पर सरकार द्वारा घोषित चौतरफा युद्ध के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करने के लिए यह प्रदर्शन किया गया है । इस प्रदर्शन से सरकार को यह संदेश देना चाहिए कि हम इस क्रूर हमले का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। एआईआईईए केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और अन्य स्वतंत्र महासंघों के साथ नवउदारवादी एजेंडे के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिरोध का निर्माण करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। सभा को आर डी आई ई यू के।महासचिव सुरेन्द्र शर्मा ने भी संबोधित किया । सभा की अध्यक्षता कामरेड अलेक्जेंडर तिर्की ने की ।