पुल टूटा नहीं, बस लोहे की रस्सियां खुल गयीं (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
November 2, 2022ये लो, कर लो बात। अब पीएम जी का अच्छा पहनना-ओढऩा भी इन भारत विरोधी विपक्षियों की आंखों में खटकने लगा। कह रहे हैं कि मोरबी के झूलते पुल के चक्कर में मौत की बांहों में झूल गए करीब डेढ़ सौ लोगों के लिए पीएम जी के आंसुओं को सच्चा तो हम भी मानना चाहते थे, पर पीएम जी का डिजाइनर हैट बीच में आ गया। वैसे तो पीएम जी को त्रासदी के अगले ही दिन, तीन आयोजनों में, चार अलग-अलग ड्रेसों में फोटो भी नहीं खिंचाने चाहिए थे। पर बाकी पोशाकें तो चलो फिर भी हजम कर ली जाएं, पर हैट लगाकर दु:ख नहीं जताना चाहिए था। कह रहे हैं कि जहां हैट-टाई-कोट का चलन है, वहां भी दु:ख जताने के लिए हैट उतार कर नंगा सिर झुकाते हैं। फिर यहां तो हैट भी शौकिया था; मोदी जी को कम से कम शोक के मौके पर हैट का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए था!
हमें अच्छी तरह से पता है कि हैट का तो बहाना है, पीएम जी के सुंदर दीखने पर ही विपक्षियों का निशाना है। इन्हें दिक्कत इससे है कि जो सत्तर साल में नहीं हुआ, अमृत काल में हर रोज हो रहा है; नये इंडिया का पीएम किसी गरीब देश का पीएम नहीं, विकासशील देश का पीएम नहीं, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पीएम की पोशाकों में चमक रहा है। विश्व के सबसे ताकतवर देशों के राजनेता भी पहली बार न सिर्फ हमारे पीएम की पोशाकों की तारीफ करने लगे हैं, बल्कि उन्होंने तो इसका पता लगाने के लिए जासूस तक छोड़े हुए हैं कि मोदी जी के ड्रेस डिजाइनर कौन हैं, क्या उनके ड्रेस डिजाइनर उन्हें भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं?
पीएम चमक रहा है यानी देश चमक रहा है। पीएम की चमक-दमक में ही तो देश की चमक है, देश का गौरव है। मोदी जी के इन विरोधियों ने भारत को इतने समय तक गरीब बनाए रखा था कि ये मान ही नहीं सकते हैं कि पीएम सजेगा-धजेगा,l तभी नये इंडिया का पीएम लगेगा।
रही हैट की बात, तो मोदी जी को हैट का शिष्टाचार सिखाने की अशिष्टता कोई नहीं करे। वैसे भी शोक में सिर नंगा कर के झुकाने की पश्चिमी रिवायत का हम आंख मूंदकर पालन क्यों करते रहेंगे और कब तक? यह कोई नहीं भूले कि मोदी जी ने अमृत काल का उद्घाटन करते हुए, लाल किले से जिन पांच प्रणों का एलान किया था, उनमें एक प्रण विदेशी प्रभावों से पूरी तरह से मुक्ति का भी है। अब तक नहीं होने से क्या हुआ, कम से कम अब इस विदेशी रिवायत से भी मुक्ति का समय आ गया है कि शोक में सिर नंगा कर के दिखाना होगा। हम अब अपने ही तरीके से शोक जताएंगे, हैट पहनकर ही आंसू गिराएंगे; कोई रोक सकता हो, तो रोक ले।
और हैट-हैट का शोर मचाकर, इसका कनैक्शन सूट-बूट की सरकार से जोडऩे की कोशिश कोई नहीं करे। और यह तो सरासर झूठा प्रचार ही है कि मोदी जी ने शोक जताने के मौके पर हैट पहना था। मौका शोक जताने का तो था ही नहीं। मोरबी वालों को तो खुश होना चाहिए कि मोदी जी ने उनका विशेष ख्याल किया और खुशी के मौके पर भी अपने भाषण में, दु:ख का संदेश घुसा दिया। वर्ना मौका तो पुराने वाले सरदार साहब के जन्मदिन पर, एअर शो के जरिए उन्हें सलामी देने का था। मोदी जी ने तो हैट को भी अपने सिर पर सिर्फ इसलिए जगह दी थी कि एअर शो और हैट की अच्छी मैचिंग है। दोनों एक ही जगह से जो आए हैं। वर्ना मोदी जी को पगडिय़ों की आत्मनिर्भरता का कितना शौक है, यह तो सभी जानते ही हैं। जितनी तरह की पगडिय़ां मोदी ने आठ साल में पहन कर और फोटो खिंचाकर उतार दी हैं, उतनी तो नेहरू जी ने सोलह साल में देखी भी नहीं होंगी। खैर पगड़ी हो तो और हैट हो तो, मोदी जी शोक में अपना गंजा सिर हर्गिज नहीं दिखाएंगे। आखिर, पीएम की सुदर्शनीयता में ही, देश का गौरव है।
और जो विरोधी, देश की शोभा बढ़ाने के लिए पीएम के जरा से सजने-धजने में मीन-मेख निकालने से बाज नहीं आते हैं, उनसे पीएम के शोक में मोरबी जाने के मौके पर, वहां का अस्पताल चमकाए जाने को पसंद करने की उम्मीद कोई कर ही कैसे सकता है। मार तमाम शोर मचाए जा रहे हैं कि त्रासदी के घायलों की परवाह करना छोडक़र, अस्पताल वाले पीएम जी की अगवानी की तैयारियों में जुटे हैं। रातों-रात सफाई, मरम्मत, सब पर ध्यान है, बस घायलों की ही तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
शोक की यह शोबाजी तो, घायलों और उनके परिवार वालों की तकलीफें ही बढ़ाने वाली है, वगैरह। लेकिन, यह सब शुद्ध नकारात्मकता है। वर्ना सिंपल सी बात है। मोदी जी घायलों को देखने अस्पताल जाएंगे, तो उनके साथ कैमरे जाएंगे या नहीं? कैमरे कितने भी मोदी जी पर ही फोकस्ड रहें, मरीज, अस्पताल वगैरह भी किसी न किसी फ्रेम में तो आएंगे या नहीं? सब साफ-सुथरा बल्कि चमचमाता हुआ नहीं होगा, तो क्या सारी दुनिया में भारत की, गरीब देश की छवि ही नहीं चली जाएगी? विपक्ष वाले चाहें तो भी, मोदी जी ऐसा हर्गिज नहीं होने देंगे। फ्रेम में चाहे सिर्फ वही रहें, पर दुनिया में भारत की छवि संपन्न देश की बनाकर रहेंगे।
रही मोरबी के झूला पुल के टूटने की बात, तो मोदी जी की डबल इंजन सरकार ने पहले ही एलान कर दिया है कि दुर्घटना के लिए जिम्मेदार किसी भी शख्स को बख्शा नहीं जाएगा। पीएम जी के आंसुओं के बाद, सच पूछिए तो इसकी जरूरत ही नहीं थी। हाथी के पांव में सब का पांव। फिर भी डबल इंजन ने जीरो टॉलरेंस कहा ही नहीं, कर के भी दिखाया है। पुल की मरम्मत करने वाले मजदूरों से लेकर, टिकट देने वालेे क्लर्कों और चौकीदारों तक सब को, पीएम जी के पहुंचने से पहले ही हवालात की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। आने वाले दिनों में और भी पकड़े जा सकते हैं, झूलते पुल को हिलाने वाले। केंद्रीय जांच एजेंसियां भी चुनाव से ठीक पहले षडयंत्र के एंगल से जांच करेंगी। कोई दोषी बचकर जाने नहीं पाएगा। बस प्लीज, झूलते पुल की मरम्मत कराने वालों, पुल के रखरखाव-संचालन का ठेका लेने वालों, पुल ठेके पर देने वालों का नाम, इस सब में खामखां में कोई नहीं घसीटे। डबल इंजन सरकार को तो हर्गिज नहीं।
वैसे भी यह तो कहना ही गलत है कि मोरबी का झूलता पुल टूटने से इतनी मौतें हुई हैं। पुल तो टूटा ही इसलिए कि उसके टूटने से इतनी मौतें होनी लिखी थीं। वैसे यह भी कहा जा सकता है कि पुल टूटा नहीं है, बस लोहे की रस्सियां खुल गयी हैं, जिनसे पुल बंधा था। आइंदा पुलों की रस्सियां वगैरह बांधे रखने के लिए, क्या नये-पुराने सभी पुलों के दोनों सिरों पर, हनुमान जी की तस्वीर नहीं लगा सकते हैं? अर्थव्यवस्था से लेकर दवा तक, अमृत काल में देवी-देवताओं ने अपने आशीर्वाद की जरूरत ही इतनी बढ़ा दी है कि मोदी जी भी क्या करेें!