महासमुंद शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय कि छात्राओं ने मशरूम उत्पादन, पोषक तत्व एवं उनके औषधीय गुणों कि जानकारी ली…

महासमुंद शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय कि छात्राओं ने मशरूम उत्पादन, पोषक तत्व एवं उनके औषधीय गुणों कि जानकारी ली…

December 13, 2022 0 By Central News Service

महासमुंद 13 दिसंबर 2022/ शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय महासमुंद में मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग कार्यक्रम के द्वितीय दिन महाविद्यालय के नवनियुक्त सहायक प्राध्यापक खगेश्वर नौरंगे ने छात्राओं को मशरूम की विभिन्न प्रजातियां उनके पोषक तत्व औषधीय गुण की जानकारी विस्तार से दी ।

प्राध्यापक नौरंगे ने अपने वक्तव्य में कहा कि मशरूम में लगभग 22-35 प्रतिशत उच्च कोटि की प्रोटीन पायी जाती है, जिसकी पाचन शक्ती‌ 60-70 प्रतिशत तक होती है। जो पौधों से प्राप्त प्रोटीन से कही अधिक होती है तथा यह जन्तु प्रोटीन के मध्यस्थ का दर्जा रखती है। मशरूम की प्रोटीन में शरीर के लिये आवश्यक सभी अमीनो अम्ल, मेथियोनिन, ल्यूसिन, आइसोल्यूसिन, लाइसिन, थ्रीमिन, टि्रप्टोफेन, वैलीन, हिस्टीडिन और आर्जीनिन आदि की प्राप्ति हो जाती है जो दालों (शाकाहार) आदि में प्रचुर मात्रा में नहीं पाये जाते हैं ।
मशरूम प्रोटीन में लाइसिन नामक अमीनों अम्ल अधिक मात्रा में होता है जबकि गेहूँ, चावल आदि अनाजों में इसकी मात्रा बहुत कम होती है यह अमीनों अम्ल मानव के सन्तुलित भोजन के लिये आवश्यक होता है।
इसमें कालवासिन, क्यूनाइड, लेंटीनिन, क्षारीय एवं अम्लीय प्रोटीन की उपस्थिति मानव शरीर में टयूमर बनने से रोकती है।


ट्रेनिंग के द्वितीय सत्र में छात्राओं ने केमिकल से उपचारित पैरा कुट्टी में मशरूम बीज संरोपित करने एवं बैड तैयार करने की विधि जानी इसके साथ ही पोटेटो डेक्सट्रोज अगर माध्यम पर मशरूम कवक को प्रयोगशाला में उगाने की विधि का प्रायोगिक कार्य ट्रेनिंग वॉलिंटियर सुश्री लेखनी चंदाकर सुश्री तोषण साहू, भाग्यलक्ष्मी दिवान, लेखनी और कांति दीवान के मार्गदर्शन में पूर्ण किया।

कार्यक्रम के समन्वयक डॉ स्वेतलाना नागल ने छात्राओं को पैरा कुट्टी की रासायनिक विधि को विस्तार से समझाते हुए कहा मशरूम खेती के लिए एक माध्यम की जरुरत पड़ती है, जैसे पैरा कुट्टी, पुआल या गेहू की भूषा इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। पैरा कुट्टी का अधिक उपयोग किया जाता है पुआल या पैरा को 2 से 3 से. मी. छोटे टुकड़े करा कर प्रयोग करना चाहिए। इन सभी मध्यमो को बीजाई करने से पहले उपचारित करना आवश्यक होता है। जिससे पहले से मौजूद जीवाणु को ख़तम किया जा सके, जिससे मशरुम की फसल ठीक हो। इस विधि में कृषि अवशेषो को विशेष प्रकार के कृषि दवाइओ से जीवाणु को मारा जाता है इस विधि में 100 लीटर ड्रम या टब में 90 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बावस्टीन तथा 125 मि.ली फोर्मेलिन मिलाया जाता है। जिसमे लगभग 20-25 किलो सूखे भूसे को पानी में डाला जाता है तथा ड्रम को ऊपर से पॉलीथिन से बांध दे तथा इसे 12 से 18 घंटे तक उपचारित करे। उपचारती भूसे को 4 से 8 घंटे तक खुले जगह छावदार जगह पर छोड़ दे जिसे इसके अतिरिक्त पानी बहार हो जाए तथा फोर्मे लीन की गंध भी बहार हो जाये।


नमी की प्रतिशत जानने के लिए भूसा को पकड़कर मुट्ठी में दबाये यदि भूसा से पानी ना निकले पर हथेली गीला हो तो भुसा बैग में भरने योग्य हो गया है।
बैग भरने के लिए सबसे पहले बैग में 4 – 6 इंच भुसा भर ले फिर उसे उल्टे पंजे से कसकर दबाये सभी तरफ फिर स्पान को चारों ओर किनारे पर छोड़ दे फिर पुनः 4-6 इंच भुसा भरकर उल्टे पन्जे से सभी तरफ दबाये और चारो ओर कीनारे पर बिजाई करें।यह क्रिया 5-6 बार दोहराये जब तक बैग 75% भर ना जायें।
जब बैग 75% भर जाता है तब बैग के मुंह को रबर या रस्सी से बांध देवें,और बैग के चारो ओर कुछ छेद कर देवें ताकी अतिरिक्त जल बाहर हो जाएं।
अब प्लास्टिक की रस्सी से सिकाई का निर्माण कर ले और सिकाई में मशरूम बैग को लटका दें।
मशरूम बैग को स्वच्छ एवं अंधेरे युक्त कमरे में ही लटकाना चाहिए,इसकी खेती में स्वच्छकता का विशेष ध्यान रखना होता है।


लगभग 20 दिन में माईसेलियम पूरी तरह फैल जाता है और लगभग 25 दिन में हमे पहला फसल प्राप्त हो जाता है।मशरुम उत्पादन एक लाभकारी स्वरोजगार है जिसमे काम लगत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
एक फसल चक्र 40 से 50 दिन का होता है जिसमे 1 किलो मशरुम उत्पादन में 20 से 30 रूपये लागत आता है तथा इसे मार्किट में 150 से 200 रूपये किलो तक बेचा जा सकता है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ एसबी कुमार ने छात्राओं के प्रयासों की सराहना की।